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गुना हादसा : व्यवस्था को ही ठीक करने की है जरूरत

सरोकार 

गुना हादसा : व्यवस्था को ही ठीक करने की है जरूरत
-डॉ. चन्दर सोनाने


            पिछले दिनों मध्यप्रदेश के गुना में हुए बस हादसे में 13 लोगों की जलकर जान चली गई। इनमें से सिर्फ 2 यात्रियों की ही शिनाख्त हो पाई। बाकी शवों की शिनाख्त के लिए डीएनए टेस्ट के लिए भेजा गया है। यह हादसा इतना भयंकर था कि सभी 13 लोग जलकर भस्म हो गए। किसी की भी पहचान होना बहुत मुश्किल थी। इसमें से जिन 2 लोगों की शिनाख्त हुई है, वह उनके सामानों से हुई है। बाकि जलकर भस्म हो गए। इस हादसे के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने तुरंत एक्शन लेते हुए तमाम संबंधित वरिष्ठ अफसरों को हटा भी दिया। 
                     मुख्यमंत्री ने परिवहन आयुक्त श्री संजय झा, गुना कलेक्टर श्री तरूण राठी, गुना एसपी श्री विजय खत्री और संभाग के उप परिवहन आयुक्त श्री ए.के सिंह को हटा दिया। इसके साथ ही गुना के आरटीओ श्री रवि बारेलिया और गुना नगर पालिका के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री बी.डी कतरोलिया को निलम्बित कर दिया। मुख्यमंत्री का प्रयास निःसंदेह सराहनीय है, किन्तु अब परिवहन विभाग की चरमरा गई व्यवस्था को ही बदलने की जरूरत है ! विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में करीब 1 लाख अनफिट वाहन है। यह सबसे बड़ा सवाल है। इतने सालों से ये अनफिट वाहन चल कैसे रहे हैं ? सीधी सी बात है, ऊपर से लेकर नीचे तक सबकी मिली भगत है। अब ऐसे हादसे न हो, इसलिए वर्तमान व्यवस्था को ही ठीक करने की आवश्यकता है।            
                    परिवहन विभाग की वर्तमान हालत हास्यास्पद और दयनीय है। इस विभाग के पास न तो पर्याप्त संसाधन है और न ही पर्याप्त स्टाफ है। कमर्शियल वाहनों की जाँच का जिम्मा संभाग स्तर पर गठित कुल 10 उड़नदस्तों पर हैं, किन्तु इन उड़नदस्तों में केवल 56 लोगों का ही स्टाफ है। और इन्हीं 56 लोगों के स्टाफ पर प्रदेश के करीब 25 लाख कमर्शियल वाहनों की जाँच की जिम्मेदारी है। यदि प्रदेश में सख्ती से जाँच की जाए तो 1 लाख से ज्यादा अनफिट, बिना परमिट और बिना इन्श्योरेन्स वाले कमर्शियल वाहन सड़कों पर दौड़ते हुए मिल जायेंगे। यह अत्यन्त दुःखद है।
                    परिवहन विभाग की वर्तमान व्यवस्था का जायजा लेने के लिए केवल एक संभाग का उदाहरण ही पर्याप्त है। जैसे भोपाल संभाग में 5 जिले आते हैं। इन सभी जिलों में करीब साढ़े तीन लाख कमर्शियल वाहन हैं। किन्तु इन सबकी जाँच करने के लिए 3 लोग ही है। ऐसी स्थिति अन्य संभागों में भी है। एक उड़नदस्ते में परिवहन सब इन्सपेक्टर और कुछ सिपाही शामिल होते हैं। भोपाल के साथ ही कुछ फ्लाईंग स्कॉट में परिवहन सब इन्सपेक्टर के अफसर ही नहीं है। ऐसी स्थिति में जाँच भी कैसे की जाए ? परिवहन सब इन्सपेक्टर की 10 साल से प्रदेश में भर्ती ही नहीं हुई है। गृह विभाग से पहले प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग में लोग आ जाते थे किन्तु अब काफी समय से इस प्रतिनियुक्ति पर ही प्रतिबंध लगा हुआ है। इस कारण से परिवहन विभाग की हालत और भी खराब है। 
                       मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हादसे के तुरन्त बाद वहाँ का भ्रमण किया और अस्पताल जाकर घायलों से मिलकर न केवल उन्हें सांत्वना दी, बल्कि राहत राशि की भी घोषणा की। मुख्यमंत्री ने घायलों से हादसे के बारे में भी पूछताछ कर जानकारी प्राप्त की। उन्होंने अधिकारियों से भी हादसे के बारे में जानकारी ली।
                        प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वरिष्ठ अधिकारियों को भी नहीं छोड़ा है। इसकी सभी जगह सराहना की जा रही है। अब उन्हें इस विभाग की खराब हालत को सुधारने की भी जरूरत है। इसके लिए सभी जिलों और संभागों में सबसे पहले रिक्त पदों की पूर्ति प्राथमिकता से की जानी चाहिए। इसके साथ ही दिनों-दिन बढ़ रहे वाहनों को देखते हुए दशकों पुराने स्वीकृत पदों को वर्तमान हालत को देखते हुए बढ़ाए जाने की भी आवश्यकता है। इसके साथ ही प्रदेश के सभी आरटीओ ऑफिस में पर्याप्त संसाधन के साथ ही तकनीकी स्टाफ की भी भर्ती की जानी चाहिए। यह काम जितनी जल्दी हो सके करने की आवश्यकता है। अन्यथा ऐसे ही हादसे होते रहेंगे। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष सेंधवा में हुए हादसे के बाद व्यवस्था में कोई खास परिवर्तन नहीं होने के कारण ही गुना जैसे हादसे हो रहे है ! 
                   

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