’आंखों देखी अयोध्या’ पर पूर्व राज्य सूचना आयुक्त ने प्रकाश स्मृति व्याख्यान माला में रखे विचार
खरगोन। पूर्व राज्य सूचना आयुक्त, ख्यात लेखक व चिंतक विजय मनोहर तिवारी ने कहा है कि कहने के लिए भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिल गई थी, लेकिन अयोध्या का 15 अगस्त साल 2024 की 22 जनवरी को आया है। अयोध्या भारत की स्वाधीनता का अमृतकाल बीत जाने के बाद पूरे 75 साल के लंबे विलंब से आजाद हुई है। आजादी के समय भारत टुकड़े-टुकड़े हुआ और भारत में आजादी भी टुकड़ों-टुकड़ों में ही मिल रही है। अभी भी बहुत क्षेत्र ऐेसे हैं, जहाँ सच्चे अर्थों में आजादी नहीं आई है। काशी से मथुरा तक अदालतों के चक्कर किस बात के लिए लग रहे हैं। आजाद भारत में अपने ही पवित्र तीर्थ क्षेत्रों की स्वतंत्रता के लिए हमें यह दिन भी देखने थे। किंतु अयोध्या भारत के सहिष्णु बहुसंख्यक समाज के धैर्य और सत्य की विजय का सबसे ताजा सबूत है, जो दुनिया ने देखा है।
प्रकाश स्मृति सेवा संस्थान खरगोन की पहल पर तीन दिनी प्रकाश स्मृति व्याख्यानमाला के समापन व्याख्यान का विषय था- आँखों देखी अयोध्या। इसपर संबोधित करते हुए श्री तिवारी ने कहा रामलला के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के पहले लगभग एक माह तक अयोध्या में रहे श्री तिवारी ने कहा कि अयोध्या का वैभव 1528 में पहली बार ध्वस्त नहीं हुआ था। राम मंदिर भले ही बाबर के लुटेरों ने तोड़ा हो लेकिन बाबर से भी पाँच सौ साल पहले 1033 में सालार मसूद नाम के एक और लुटेरे ने कनक महल को मिट्टी में मिलाया था। अयोध्या एक हजार साल से इस्लामी आतंक को झेलती रही। राम मंदिर के लिए 78 संघर्ष यह बताते हैं कि अयोध्या में शांति कभी रही नहीं। लगातार संघर्ष होते रहे। समाज सोया नहीं था। वह प्रयासों में लगा रहा। 22 जनवरी का दिन केवल अयोध्या के उत्सव का दिन नहीं है, यह संपूर्ण आजादी की ओर बढ़ा एक मजबूत कदम है। उन्होंने कहा कि सबके साथ, सबके विकास की बातें कहने में भी ठीक हैं। एक वर्ग आज भी ऐसा है, जिसे अयोध्या का उल्लास फूटी आँखों नहीं सुहा रहा। वे काशी और मथुरा के अधिक स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाणों के बावजूद अड़े हुए हैं कि ये स्थान स्वतंत्र न हों। लेकिन अयोध्या भारत की भावी पीढ़ियों को यह बताएगी कि हम अन्याय के विरुद्ध कभी झुके नहीं। हमारा संघर्ष कभी थमा नहीं। हम कायर नहीं थे। हमने झूठी सौगंधें खाना नहीं सीखा था। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता दाऊलाल महाजन ने की। विशेष अतिथि प्रकाश मंडलोई थे। ’इतनी शक्ति हमें देना दाता...’ प्रार्थना निर्मल चौरे व साथियों ने ली। मंचासीन अतिथियों का स्वागत रणजीतसिंह डंडीर, राजेश महाजन, दाऊलाल महाजन, कन्हैया कोठाने, पीयूष जोशी, राजेश गुप्ता, भानू परसाई, अंकुश कानूनगो, सचिन महाजन, अंशु भंडारी ने किया। शैलेष जैन ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया। समिति सदस्यों ने मुख्य वक्ता श्री तिवारी को अभिनंदन पत्र प्रदान किया। स्वागत भाषण ब्रजमोहन चौरे ने दिया। प्रकाश भावसार व संजय पाराशर ने शॉल, श्रीफल व स्मृति चिन्ह भेंटकर श्री तिवारी का सम्मान किया। रजनी उपाध्याय ने ’आज सजी है अवध नगरिया’ गीत लिया। प्रबल महाजन ने कविता प्रस्तुत की। संचालन सचिव दिलीप कर्पे व संचालक रवि प्रकाश महाजन ने किया। आभार दीप जोशी ने माना।
*युवाओं को पढ़ाएं भारत का असल इतिहास*
श्री तिवारी ने कहा कि युवा पीढ़ी को भारत का असल इतिहास पढ़ना चाहिए। स्कूल-कॉलेज अपने शैक्षिणिक टूर तीर्थ क्षेत्रों और ऐतिहासिक स्थानों की ज्ञानवर्द्धक हेरिटेज वॉक के रूप में अनिवार्य करें। बच्चों को अपनी संस्कृति और परंपराओं के बारे में अधिक से अधिक बताएँ। विरासत को बचाने के लिए विरासत के बारे में बताना पहले जरूरी है। अयोध्या सबको आमंत्रण दे रही है। अयोध्या के भारत के अतीत की एक पुकार है, जो सुनी जाना चाहिए। वहां केवल एक भव्य और विशाल मंदिर का ही निर्माण नहीं हुआ है। अयोध्या एक ऐसे मॉडल की तरह उभरी है, जिससे दूसरे राज्य की सरकारों और स्थानीय निकायों को सबक मिलते हैं। हम भी अपने उपेक्षित और बरबाद हो रहे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों का विकास अयोध्या की तरह कर सकते हैं। अयोध्या भविष्य के भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक राजधानी बनेगी। यहाँ से एक नया कालचक्र आरंभ हो गया है।
*दशकों उपेक्षित व लावारिस रही अयोध्या*
श्री तिवारी ने कहा अयोध्या में सरयू नदी साफ-सुथरी कर दी जाए, घाटों को रौनकदार बना दिया जाए, शहर का विकास कर दिया जाए इसमें तो कोई बाधा नहीं थी। इसके लिए तो किसी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना था। लेकिन कांग्रेस, सपा-बसपा के राज में न अयोध्या का कोई महत्व था, न प्रभु श्रीराम के प्रति कोई श्रद्धा थी। उन्हें न काशी से कुछ लेना-देना था, न मथुरा से मतलब था। वे सब सेक्युलरिज्म के बोझ तले दबे कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोग थे, जिनके दुर्बल घुटने मुस्लिम वोटों पर टिके हुए थे। एक तरफा झुकाव वाली पंथनिरपेक्षता ने भारत को बहुत नुकसान पहुंचाया है। हम ऐसी समस्याओं में जूझ रहे हैं, जिन पर 15 अगस्त 1947 की दोपहर के पहले एकमुश्त निर्णय ले लिए जाने थे, किंतु कांग्रेस के लिए सत्ता में आना ही स्वतंत्रता का ध्येय था। उसने सत्ता की खातिर देश को दाव पर लगाना उचित समझा। आज हम किनके पापों की फसलें काट रहे हैं, यह अब किसी से छुपा नहीं रह गया है। ज्यादातर नकारात्मक राजनीतिक शक्तियाँ सत्ता से बाहर हो चुकी हैं। अयोध्या 21 वीं सदी के सशक्त भारत की नई मंगलयात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बनेगी।
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