शिप्रा शुद्धिकरण : मुख्यमंत्री डॉ. यादव के निर्देश पर आस जगी
आलेख -डॉ. चन्दर सोनाने
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में भोपाल में आयोजित एक बैठक में निर्देश दिए कि उज्जैन की मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के जल के शुद्धिकरण के लिए योजना बनाई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि खान नदी का गंदा पानी शिप्रा नदी में नही मिले, यह सुनिश्चित किया जाए। मुख्यमंत्री के इस निर्देश पर दशकों से प्रदूषित पतित पावन शिप्रा नदी को अपने उद्धार की एक नई आस जगी है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर तत्काल भोपाल में अधिकारियों ने बैठक की। इस बैठक में वर्चुअल रूप से उज्जैन के वरिष्ठ अधिकारी भी जुड़े। इस बैठक में सबने एक ही उपाय सुझाया और वो सुझाव यह था कि इन्दौर और सांवेर में लगे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता और बढ़ा दी जाए। और इसके साथ ही उज्जैन में खान नदी पर भी एक नया सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा दिया जाए, ताकि शिप्रा में दूषित और प्रदूषित जल मिल नहीं पाए। बैठक में यह भी बताया गया कि देश के सबसे स्वच्छ शहर इन्दौर का सीवेज युक्त 5 क्यूसेक प्रदूषित पानी खान नदी में मिलते हुए उज्जैन आकर त्रिवेणी पर शिप्रा नदी में मिल रहा है और इससे शिप्रा प्रदूषित हो रही है। भोपाल में आयोजित बैठक में जो सुझाव आया है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। और इस पर ही सही मायने में ध्यान केन्द्रीत किया जाए तो शिप्रा नदी को प्रदूषण मुक्त होने में अधिक समय नहीं लगेगा।
शिप्रा शुद्धिकरण के लिए पूर्व में प्रयास नहीं किए गए, ऐसा नहीं है। पूर्व में भी सिंहस्थ 2016 के समय श्रद्धालुओं को शुद्ध जल में स्नान पुण्य लाभ मिल सके इसके लिए 95 करोड़ रूपए खर्च कर खान डायवर्सन पाईप लाइन योजना को धरातल पर उतारा गया था, किन्तु वह पूरी तरह असफल सिद्ध हो गई। इसी प्रकार गत वर्ष 5 दिसम्बर 2022 को जल संसाधन विभाग द्वारा 598 करोड़ 66 लाख रूपए कि खान डायवर्सन क्लोज डक्ट परियोजना स्वीकृत की गई थी। यह योजना अभी तक धरातल पर उतरी नहीं है, किन्तु इसके भी असफल होने की पूरी तरह से संभावना है। क्योंकि यह योजना भी खान डायवर्सन पाईपलाईन योजना के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाई गई। जिस प्रकार वह योजना असफल सिद्ध हुई, उसी प्रकार इस नवीन योजना के असफल होने की संभावना के कारण विभिन्न क्षेत्रों से इसका विरोध किया जाने लगा। इसी कारण से लगता है यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का नया निर्देश आशा जगाने वाला है। उन्होंने अपने निर्देश में कहीं भी 5 दिसम्बर 2022 की क्लोज डक्ट परियोजना का उल्लेख नहीं करते हुए नवीन योजना बनाने के निर्देश दिए। इससे यह संभावना पुख्ता हुई कि सही समय पर उक्त योजना को शुरू होने से पहले ही रोक दिया गया। यह खबर आशा जगाने वाली है।
खुशी की बात है कि पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने इंदौर और उज्जैन में बहने वाली खान नदी को राष्ट्रीय गंगा संरक्षण मिशन नमामि गंगे प्रोजेक्ट में शामिल करते हुए 511 करोड़ रूपए की मंजूरी दी है। इसके अर्न्तगत 195 एमएलडी के तीन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट ( एसटीपी ) बनाए जायेंगे। इनमें से 120 एमएलडी का एसटीपी कबीटखेड़ी, 35 एमएलडी का लक्ष्मीबाई प्रतिमा और 40 एमएलडी का एसटीपी कनाड़िया पर बनाया जायेगा। यह खान नदी गंगा बेसिन में शामिल की गई है। इसका पानी शिप्रा, चंबल और यमुना नदी के माध्यम से गंगा नदी में मिलता है।
केन्द्र सरकार द्वारा दी गई यह मंजूरी इंदौर शहरी सीमा से सटे गाँव और शिप्रा शुद्धिकरण के लिए दी गई है। इस मंजूरी के अन्तर्गत 244 करोड़ रूपये से एसटीपी का निर्माण किया जायेगा और 190 करोड़ रूपये मेंटेनेंस के लिए भी दिए जायेंगे। दो साल में इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है। इस परियोजना के अर्न्तगत 13 किलोमीटर की पाईप लाईन भी डाली जायेगी। इसके पानी का उपयोग बगीचे, खेल मैदान, सड़क धुलाई आदि में किया जा सकेगा। हाल फिलहाल इन्दौर नगर निगम 10 एसटीपी से 412 एमएलडी पानी प्रतिदिन उपचार कर रहा है। 90-90 एमएलडी के एसटीपी पुरानी टेक्नोलॉजी के है। अब नई परियोजना के अर्न्तगत नई टेक्नोलॉजी से एसटीपी बनाए जायेंगे।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करने के बाद जल्द ही उन्होंने शिप्रा शुद्धिकरण की सुध ली है, यह सराहनीय है। अब यह उम्मीद बनी है कि इन्दौर और सांवेर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ा देने से वहाँ और तेजी से एवं अधिक अशुद्ध जल का शुद्धिकरण हो सकेगा। वहीं उज्जैन के त्रिवेणी पर खान नदी पर एक नया सीवरेज प्लांट बनाने से खान नदी का प्रदूषित पानी शुद्ध हो सकेगा और वह शिप्रा नदी में मिलने से नदी प्रदूषित नहीं हो पायेगी। इसके साथ ही यह भी प्रयास किया जाना चाहिए कि आगामी सिंहस्थ 2028 में शिप्रा के जल से ही श्रद्धालु स्नान कर सके, इसके लिए शिप्रा को प्रवाहमान बनाने की भी आवश्यकता है। इस दिशा में भी जल विशेषज्ञों की मदद लेकर कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि आगामी सिंहस्थ में श्रद्धालुगण शिप्रा के जल में ही स्नान कर सके।
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