भोपाल। भोपाल जिले के परवलिया थाना क्षेत्र के ग्राम तारासेवनिया में अवैध रूप से संचालित बालगृह के आरोपी संचालक को पुलिस ने गिरफ्तार कर रविवार को उसे भोपाल जिला अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है। हालांकि पुलिस द्वारा आरोपी को पूछताछ के लिए रिमांड पर नहीं लेने से पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह किया जा रहा है। परवलिया थाना प्रभारी हरिशंकर वर्मा ने बताया कि पिछले दिनों राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और अन्य अधिकारियों ने बालगृह का औचक निरीक्षण किया तो पता चला कि बालगृह अवैध रूप से संचालित किया जा रहा है। इस मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी की रिपोर्ट पर संचालक के खिलाफ जेजे एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था। पुलिस अधीक्षक देहात प्रमोद कुमार सिन्हा ने आरोपी बालगृह संचालक की गिरफ्तारी के लिए एक विशेष टीम बनाई थी। इसके बाद पुलिस टीम ने आरोपी अनिल मैथ्यू (49) निवासी अप्सरा टावर थाना अशोका गार्डन को गिरफ्तार किया। आरोपी को न्यायालय में पेश किया गया था, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है।
यह था पूरा मामला, हुआ था औचक निरीक्षण-
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो और मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र मोरे तथा अन्य सदस्यों ने बीती 4 जनवरी को ग्राम तारा सेवनिया थाना परवलिया स्थित ऑचल बालगृह का औचक निरीक्षण किया था। इस दौरान पता चला कि उक्त बालगृह अवैध रूप से संचालित किया जा रहा है। यहां पर कुल 67 बालिकाओं की रजिस्टर पर एंट्री मिली थी, लेकिन मौके पर केवल 41 बालिकाएं ही पाई गईं। 26 बालिकाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। परवलिया पुलिस ने जब मामले की पड़ताल की तो पता चला कि गायब सभी बालिकाएं अपने-अपने परिवार के पास सुरक्षित हैं।
विभाग की तरफ से इस मामले में लापरवाही बरतने वाले तीन अधिकारियों को निलंबित किया गया था, जबकि दो अधिकारियों को का बताओ नोटिस जारी किया गया था। विवेचना के दौरान आंचल बालगृह में निवासरत बालिकाओं, जिन्हें नित्यसेवा सोसायटी गांधीनगर, शासकीय बालगृह नेहरू नगर, बाल निकेतन ट्रस्ट हमीदिया रोड में सुरक्षार्थ रखा गया है। इन बालिकाओं से पूछताछ करने पर उनके द्वारा बताया गया कि आंचल बालगृह में उनसे भवन की साफ-सफाई एवं अन्य कार्य कराए जाते थे। इसके साथ ही ईसाई धर्म के अनुसार पूजा प्रार्थना करने हेतु प्रेरित किया जाता था। इसके बाद संचालक के खिलाफ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धाराओं का इजाफा किया गया था।